सोलह संस्कारों में से एक है विवाह संस्कार। विवाह दो तन ही नहीं अपितु दो आत्माओं का मिलन है। सनातन सभ्यता में विवाह के वक्त कन्या और वर अग्नि को साक्षी मानकर चार फेरे लेते है (कहीँ कहीँ सात फेरे भी लिए जाते है) और फिर जन्म जन्मांतर तक के लिए एक-दूसरे के हो जाते है। मगर क्या आपने सोचा है कि विवाह में अग्नि के ही चारों ओर क्यों फेरे लिए जाते है? हिन्दुबुक के पन्नो से आज हम आपके लिए लेकर आए है कि सनातन सभ्यता में विवाह में अग्नि के समक्ष वचन और फेरे क्यों लिए जाते है।
शास्त्रानुसार मनुष्य की रचना अग्नि, पृथ्वी, जल, वायु और आकाश इन 5 तत्वों से मिलकर हुई है और अग्नि को भगवान विष्णु का स्वरूप माना गया है। विष्णु ही नहीं शास्त्रों में बताया गया है कि अग्नि में सभी देवताओं का तत्व बसता है, इसीलिए यज्ञादि कर्मों में हम अग्नि द्वारा देवताओं को आहुतियां देते है।
माना जाता है कि अग्नि के चारों तरफ फेरे लेकर वचन लेते हुए विवाह सम्पन्न होने का अर्थ है कि वर-वधू ने सभी देवताओं को साक्षी मानकर एक दूसरे को अपना जीवनसाथी स्वीकार किया है और वैवाहिक जीवन की सभी जिम्मेरियों को निभाने का वचन लिया है।
विष्णुस्वरुप होने और अग्नि में सभी देवताओं का अंश रहने के कारण अग्नि को पवित्र और अशुद्धियों को दूर करने वाला माना जाता है। मान्यता है कि अग्नि के फेरे लेने से वर-वधू ने सभी प्रकार की अशुद्घियों को दूर करके शुद्घ भाव से एक दूसरे को स्वीकार किया है।
अग्नि के सामने यह रस्म इसलिए पूरी की जाती है क्योंकि एक ओर अग्नि जीवन का आधार है, तो दूसरी ओर जीवन में गतिशीलता और कार्य की क्षमता तथा शरीर को पुष्ट करने की क्षमता सभी कुछ अग्नि के द्वारा ही आती है। आध्यात्मिक संदर्भों में अग्नि पृथ्वी पर सूर्य का प्रतिनिधि और सूर्य जगत की आत्मा तथा विष्णु का रूप है।
अत: अग्नि के सामने फेरे लेने का अर्थ है, परमात्मा के समक्ष फेरे लेना। अग्नि हमारे सभी पापों को जलाकर नष्ट भी कर देती है। अत: जीवन में पूरी पवित्रता के साथ एक अति महत्वपूर्ण कार्य का आरंभ अग्नि के सामने वचनबद्ध होकर करना सब प्रकार से उचित है।
Jai Shankar ki